मेरी प्राथमिक और माध्यमिक स्तर(1-8th) की पढ़ाई सरस्वती शिशु मंदिर से हुई थी,यह विधालय अपने आदर्श, संस्कार और सदाचार के नाम से जाना जाता है।
हमारे इस स्कूल में तब लड़का लड़की आपस में बात करने में काफी संकोच महसूस करते थे और कोई आवश्यक या पढ़ाई संबधित काम हो तो ही बात करते थे अन्यथा नहीं(शायद आपके स्कूलों में ऐसा नहीं होता होगा )।
यहां हमें अपने पुरुष शिक्षकों की आचार्य जी व महिला शिक्षकों को दीदी जी संबोधित करना होता था तथा अपने सीनियर लडकों को भैय्या और लड़कियों को दीदी कहना पड़ता था।हद तो यह थी कि हमें अपने क्लास वालों को भी भैय्या बहन बुलाना पड़ता था,लड़कियां लड़कों को भैय्या व लड़के लडकियों को बहन बोलकर ही बात करते थे(हां आपने सही पढ़ा , हमें यह बोलना पड़ता था) । हमारे जूनियर हमें भैय्या और हम उनको भाई - बहन बोलते थे।
हमारे इस स्कूल में अपशब्दों का प्रयोग वर्जित था कोई गलती से रे, बे बोल देता था तो उसकी शिकायत टीचर(आचार्य जी) से कर दी जाती थी यदि किसी ने गलती से कुत्ता,कमिना जैसे शब्द बोल दिए तो उसकी शामत आ जाती थी आचार्य जी उसको पहले डांटते थे फिर मारते थे फिर पैरेंट्स- टीचर मीटिंग( अभिभावक- आचार्य बैठक) में हमारे पैरेंट्स से विस्तार में हमारे स्वभाव के बारे में चर्चा करते थे इसके बाद हमें घर से भी २ शब्द सुनने का अवसर प्राप्त होता था।
हमारे इस स्कूल में एक अच्छा इनोवेटिव कार्यक्रम होता था - सामूहिक रक्षाबंधन का। जिसमें कोई भी लड़की(बहन) किसी भी लड़के को अपना भाई बना सकती थी ( इस सामूहिक रक्षाबंधन ने ना जाने कितने लड़कों के सपनों की रानी को असली की बहन बनाया है)। यह कार्यक्रम राखी के 2-3 दिन बाद मनाया जाता था ताकि जो कोई कहीं बाहर गए हैं वो भी वापस आकर बलि का बकरा बन सके।कई महानुभाव लड़के इस अरमानों पे पानी फेरने वाले कार्यक्रम से बचने के लिए उस दिन कोई बहाना जैसे स्वयं को बीमार घोषित कर देना,अपने किसी रिश्तेदार की जीवनकाल में ही मृत्यु घोषित करवा देना जैसे चतुर रणनीति का प्रयोग करते थे किन्तु इस संकट से बच नहीं पाते थे बल्कि और भयंकर रूप से शिकार होते थे।जिस दिन भी ये चतुर लड़के स्कूल आते थे तो कक्षाचार्य् (क्लास टीचर) इनकी पहचान कर क्लास कि लडकियों से कहते कि आपने इन भैय्या को तो रक्षासूत्र बांधा ही नहीं। तब क्लास कि सारी लड़कियां उस लड़के के हाथों में राखी बांधकर उसे क्लास के सामूहिक भाई का सम्मान प्रदान करतीं थीं। (और यह लड़का क्लास के अन्य लकड़ों का अनचाहा साला (brother in law) बन जाता था)
हमारे स्कूल का वातावरण शुद्ध वायु,शुद्ध विचार और शुद्ध हिन्दी से परिपूर्ण था ,कोई इसकी शुद्धता को प्रदूषित (गलत शब्दों का प्रयोग, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट स्कूल में लाना, मांसाहार टिफिन में लाना,स्कूल में देर से आना, अनैतिक गतिविधि करना) करने का प्रयत्न करता तो उसे उचित दंड भी प्राप्त होता था।
स्कूल में हमें बहुत ही अच्छी तरह ज्ञान प्रदान किया जाता था और उससे भी अच्छी तरह भर के गृहकार्य (होमवर्क) दिया जाता था, गृहकार्य पूर्ण न होने की स्थिति में पूरे क्लास के सामने निंदा प्राप्त होती थी और कभी कभी दण्ड प्राप्त होने का सौभाग्य भी मिल जाता था(कदाचित मैं इस सौभाग्य के लायक नहीं था)
एक घटना का जिक्र मैं करना चाहूंगा यह घटना तब की है जब मैं 6th क्लास में था इस घटना ने हमारे क्लास कि बनी बनाई इज्जत को धूमिल कर दिया था, हमारे स्कूल में सभी विद्यार्थियों को एक साथ लंच हॉल में बैठ कर भोजन मंत्र के पश्चात भोजन ग्रहण करना होता था और यह लंच टाइम आधे घंटे का होता था इस दौरान सारी क्लासेज खाली होती थी क्योंकि सभी विद्यार्थी लंच हॉल में लंच करने के लिए उपस्थित होते थे। एक दिन की बात है कि हमारे स्कूल में लंच टाइम था, क्लास के हम सभी लड़के एक साथ बैठकर लंच कर रहे थे और इस बात से अनजान थे कि अब हमारी स्थिति में काफी परिवर्तन होने वाला है।
लंच के बाद हम सभी लड़के एक साथ क्लास पहुंचे तो देखते हैं कि श्यामपट (ब्लैकबोर्ड) पर एक कागज चिपका हुआ है जिसमें सिर्फ एक नाम लिखा हुआ था और कुछ नहीं,यह नाम हमारे क्लास की ही एक लड़की का था हम सब चौंक गए की किसने यह नाम लिखा और क्यों लिखा?लिखा तो लिखा ब्लैकबोर्ड में क्यूं चिपकाया?
कुछ देर बाद क्लास की सारी लड़कियां भी आ गई और उन्होंने भी ब्लैकबोर्ड में चिपके पेपर को देखा फिर उस लड़की को देखा, हमने भी उस लड़की को देखा।उस लड़की ने भी ब्लैकबोर्ड में चिपके पेपर पे अपने नाम को देखा,कुछ देर चुप रही फिर उसने रोना चालू कर दिया , हम सब लड़के चौंक कर एक दूसरे को देखने लगे और सोचने लगे - ये लड़की क्यूं रो रही है।
तभी 2 लड़कियां क्लास से बाहर चली गई और बाकी लड़कियां रोने वाली लड़की को घेर कर खड़ी हो गईं।
हम लड़कों को कुछ समझ नहीं आ रहा था।
कुछ देर बाद बाहर गई 2 लड़कियां अपने साथ 4 लोगों (2- आचार्य जी +2- दीदी जी) को लेकर क्लास में आई । चारों ने ब्लैकबोर्ड को चिपके पेपर को देखा फिर थोड़ा और नजदीक जाकर देखा। फिर दोनों दीदी उस रोती हुई लड़की के पास गए । फिर पहले आचार्य जी ने चारों ओर नजर घुमाकर बोला - ये किसने किया?
फिर दूसरे आचार्य जी ने हम लड़कों कि तरफ गुस्से से लाल आंखों से देखा और कहा - ये तुम लड़कों कि ही करतूत है तुम में से ही किसी ने ये किया है उसका नाम बताओ वरना तुम सब को दण्ड मिलेगा।
हम लड़कों ने एक दूसरे को देखा फिर रोती हुई लड़की को चुप कराते दीदी जी को देखा( जिनमें एक दीदी हमें अपराधी की दृष्टि से देख रही थी) फिर आचार्य जी को देखा और एक लड़के ने कहा - आचार्य जी हम सब तो अभी आएं हैं और यह पेपर पहले से चिपका था l
तभी क्लास की एक लड़की ने कहा - आचार्य जी भैय्या लोग पहले आए थे इनमें से ही होगा या ये लोग मिल कर किए होंगे।
हम लोग सोच रहे थे - क्या बोल रही है ये, ये कोई स्कूल बंक करने जैसा है क्या जो हम लोग मिल कर करेंगे(वैसे स्कूल बंक - इस स्कूल में , सपने में भी सच नहीं हो सकता)
हम सोच में ही डूबे थे कि एक दीदी जी ने कहा - भैय्या, आप लोगो से ऐसी उम्मीद नहीं थी।
दूसरी दीदी ने कहा - आप लोगो ने गलत किया भैया।
फिर एक आचार्य जी ने कहा - तुम लोगों को सजा मिलेगी।
दूसरे आचार्य जी ने कहा - मैं अभी प्रधानाचार्य और अनुशासन आचार्य को बुला के लाता हूं।
हमारा पक्ष सुने बिना हमें अपराधी बना दिया गया था हमारे उपर इल्जामों और तीखे शब्द ऐसे बरस रहे थे जैसे सारे कौरव दल ने मिलकर अभिमन्यु पर अस्त्र शस्त्र बरसाए थे।
पर अभी तो ये शुरुवात थी अभी तो हमें और तीखे वार झेलने बाकी थे।
कुछ देर बाद हमारे प्रधानाचार्य और अनुशासन प्रमुख आचार्य आए और उन्होंने पेपर पे लिखे नाम को देखा और गुस्सा करने लगे कि ऐसा कार्य हमारे स्कूल में मान्य नहीं है। और हम लड़के सोचने लगे - भाई ऐसा क्या अनुचित और गैरकानूनी कांड हो गया जिसका बिल हम लड़कों पे भारी पड़ रहा है।
कुछ देर स्थिति का आकलन करने के बाद और रोती हुई लड़की को चुप कराने के बाद हमारे आचार्य जी लोग हमें ऐसे देख रहे थे जैसे सीआईडी टीम अपराधी को इन्वेस्टिगेशन करने से पहले देखती है।
हम सबने कहा कि हमने ये नहीं किया है हम लोग तो बाद में आए पर वे नहीं माने। उनका मानना था कि ये कांड हम क्लास के लड़के ही कर सकते हैं,फिर चालू हुआ हमारा क्राइम इन्वेस्टिगेशन-
हम सभी लोगों को बारी बारी प्रधानाचार्य के कक्ष में बुलाया गया जब मेरी बारी आई मैं कक्ष में गया वहां 5 आचार्य जी बैठे हुए थे बीच में प्रधानाचार्य जी थे उनके डेस्क में एक ब्लैंक पेपर रखा था बाकी 3 आचार्य जी और एक दीदी शामिल थी। (ये दृश्य ऐसा था जैसे मेरा cgpsc का इंटरव्यू हुआ था जिसमें बोर्ड के चेयरमैन बीच में और बाकी सदस्य आसपास बैठे थे, शायद दोनों टाइम डर और नर्वसनेस तो एक जैसा ही था)
कक्ष में प्रधानाचार्य ने पहले मुझसे कहा -बेटा तुम तो पढ़ने लिखने वाले बच्चे हो तुम जानते हो ये किसने किया?
मैंने कहा - आचार्य जी हम सब एक साथ क्लास में आए थे और हमारे आने से पहले ही यह ब्लैकबोर्ड में चिपका हुए था।
अनुशासन प्रमुख आचार्य ने कहा - ऐसी स्थिति में दोस्ती मत निभाओ जिसने गलती किया है उसका नाम बता दो?
मैंने कहा - आचार्य जी मैं नहीं जानता किसने किया है।
दीदी जी ने कहा - बेटा ये ग़लत व्यवहार है,ऐसा तुम लोगो को नहीं करना चाहिए था?
मैंने कहा - दीदी जी हम जानते हैं ये अनुचित है इसलिए हम ऐसा कभी नहीं करेंगे।
ऐसे सवाल हम सब लड़कों के उपर दागे गए और हम सब ने एक ही जवाब दिया - हमने नहीं किया और हम नहीं जानते ।
इन्वेस्टिगेशन से अपराधी का पता नहीं चला और ये बात आग की तरह पूरे स्कूल में फ़ैल गई। सेकंड ब्रेक में दूसरे क्लास के स्टूडेंट्स हमारे क्लास में चिपके पेपर को देखने आने लगे और हमारा क्लास स्कूल का टूरिस्ट स्पॉट बन गया था। और चिपका हुआ पेपर हमारे स्कूल की धरोहर। भीड़ को बढ़ता देख सीआईडी टीम (आचार्य जी लोग) ने हमारे क्लास को सील कर दिया अब दूसरे क्लास के बच्चे हमारे क्लास में प्रतिबंधित कर दिए गए।
हमारे स्कूल खत्म होने के बाद अंतिम प्रार्थना होती थी जिसमे स्कूल के सारे बच्चे व टीचर्स होते थे, ये प्रार्थना भी बहुत लंबा होता था। इसे पूरा होने में 10-15 मिनट लग जाते थे,कभी कभी तो इस अंतिम प्रार्थना में नींद भी आने लगती थी।
उस दिन हमारे क्लास वाले अंतिम प्रार्थना में शामिल नहीं हुए हमें क्लास में ही रोक लिया गया फिर प्रधानाचार्य और बाकी टीचर्स भी आए और हम लड़कों पर पुनः वार करना प्रारम्भ किए पर इस बार शब्दों के वार के साथ दण्ड भी शामिल था। प्रधानाचार्य ने कहा कि इस पेपर को ऐसे ही चिपका रहने दो, जिसने ये अनैतिक काम किया है उसे एक ना एक दिन जरूर शर्म आएगी(शायद प्रधानाचार्य ने लगे रहो मुन्नाभाई मूवी ज्यादा ही देख ली थी)
हम सभी लडकों को दोषी मानते हुए जज साहब (प्रधानाचार्य) ने हमे सजा दी कि- आज से रोज अंतिम प्रार्थना हम पूरे क्लास वाले (लड़का+लड़की) अपने क्लास में करेंगे (स्कूल समुदाय से बहिष्कार) । और जब तक यह पता नहीं चलता कि ये ग़लत व अनैतिक कार्य किसने किया है हम सब लड़कों को रोज शाम को 25-25 बार उठक बैठक करना होगा । और हम सब ने यह सजा न चाहते हुए भी स्वीकार किया (हमने किताबों में भगतसिह और आजाद की अंग्रेज़ो के अन्यान्य के खिलाफ क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में तो पढ़ा किन्तु हम उसपे अमल नहीं कर पाए , क्योंकि हम इस सजा को भी मजे के तौर पर ले रहे थे और अंतिम प्रार्थना से भी तो मुक्ति मिली थी😊)
यह उठक बैठक की सजा 8-9 दिन चली हम हर शाम को उठक बैठक करते थे हमारे सीनियर और जूनियर हमें देखकर हंसने लगे थे, कभी कभी वे लोग हमारी उठक बैठक के कार्यक्रम के दर्शक बन जाते थे और आचार्य जी उनसे ताली बजवाकर हमें प्रेरित किया करते थे।
हमारे क्लास और हम लड़कों की इज्जत ऐसे नीचे गिरी थी जैसे TIK TOK APP की रेटिंग 4.7 से 1.3 तक गिर गई थी।
कुछ दिनों में ही ये केस ठंडे बस्ते में चला गया जैसे हमारे न्यायालयों में हजारों लाखों केस ठंडे बस्ते में पड़े है। धीरे धीरे हमने भी वो इज्जत पुनः कमा ली और सब सामान्य सा होने लगा।(सूत्रों के हवाले से यह पता चला था कि वो कागज़ हमारे एक सीनियर लड़के(भैय्या) ने चिपकाया था ,पर बात सूत्रों तक ही सीमित रहा)
स्कूल की ये यादें बहुत ही मीठी होती हैं,स्कूल के दिनों में हम अपने स्कूल को अपने टीचर्स को, बहुत कोसते हैं पर जब हम बड़े होते हैं और कुछ बन जाते हैं तो यही स्कूल के दिन और स्कूल के टीचर्स , बहुत याद आते हैं।
जैसे किसी घर की मजबूती उसके नीव पर निर्भर करती है वैसे ही स्कूल हमें ज्ञान का आधार प्रदान करतीं है। इस स्कूल ने हमें संस्कार ,शिक्षा और अमूल्य दोस्त दिए जो आज भी जीवन में हमारे साथ हैं।
Pic- Google image
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